धनगढ़ी गधेरा लेता है प्रतिवर्ष अनेक यात्रियों की जान, लेकिन फिर भी शासन-प्रशासन है अनजान। (रिया सोलीवाल/चंद्रा)
भिकियासैंण (अल्मोड़ा) राज्य के उत्तराखण्ड में रामनगर से लगभग 20 किलोमीटर पहाड़ की ओर जाने वाली सड़क पर स्थित “धनगढ़ी” नाम सुनते ही बरसात में आने -जाने वाले यात्रियों की रुह काँपने लगती है। यात्रियों के परिजन इस मार्ग पर यात्रा करने वालेअपने प्रियजन के सकुशल “धनगढ़ी” पार करने के लिए भगवान से प्रार्थना करते रहते हैं। धनगढ़ी पार करते ही यात्री अपने परिजनों को इस प्रकार सूचना देने के लिए फोन करने लगते हैं, मानो बहुत बड़ी जंग जीत ली हो।
जी हाँ ! रामनगर से मोहान मार्ग पर स्थित धनगढ़ी गधेरा (नाला) है, जो कि उत्तर-पश्चिम दिशा में स्थित कार्बेट नेशनल पार्क के विशाल भू-भाग से बहता हुआ कोसी नदी में मिलता है। बरसात में यह उग्र रूप धारण कर अपने साथ पत्थर, लकड़ी, जंगली जीवों की लाशें, अस्थियाँ बहाकर लाता है। जो रामनगर से भतरौंजखान, रानीखेत- अल्मोड़ा – पिथौरागढ़ – भिकियासैंण – चौखुटिया, कर्णप्रयाग, बद्रीनाथ, केदारनाथ, देघाट, थलीसैण, नैनीडांडा, धूमाकोट, श्रीनगर, पौड़ी, सराइखेत, उफरैं खाल, जगतपुरी, नागचुला खाल, सल्ट मौलेखाल, मानिला आदि पर्वतीय क्षेत्रों को जाने वाली मुख्य सड़क पर घण्टों तक जाम लगने को मजबूर कर देता है।
प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में यहाँ पर 8-10 लोग अलग-अलग हादसों में काल कवलित हो जाते हैं। यह सिलसिला ब्रिटिशकाल से ही चलता आ रहा है। इस स्थान को देखकर स्वतन्त्र भारत और पृथक पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड की स्थापना औचित्यपूर्ण प्रतीत नहीं होती है। प्रतिदिन हजारों वाहन और लाखों लोग इस मार्ग पर यात्रा करते हैं। बरसात में तो जान हथेली पर लेकर चलने वाले लोगों की संख्या अनगिनत होती है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में विशेषतः लोगों के पास सब कुछ है, लेकिन समय नहीं है। उफनते गधेरे के कारण 5-5 घण्टे तक जाम लगा रहता है, किसके पास इतना समय है ? जान जोखिम में डालकर चलने वाले लोग अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं। लम्बे समय से यहाँ पर फ्लाई ओवर की मांग चलती रही है, जिसे हमेशा सरकारों द्वारा नजरअंदाज किया जाता रहा था। लगभग चार वर्ष पूर्व राज्य सभा सांसद श्रीमान अनिल बलूनी जी के अथक प्रयासों से फ्लाई ओवर निर्माण का कार्यारम्भ हुआ था लेकिन कुछ समय कार्य शुरू होने के बाद निर्माण कार्य ने मन्थर गति पकड़ ली और विगत डेढ़ वर्ष से तो कार्य ठप पड़ गया है।
करोड़ों रुपए के लोहे के गाडर और सरिया जंक खाकर बरबादी के कगार पर हैं। अब धनगढ़ी पुल संघर्ष समिति” के नाम से प्रभावित लोगों ने एक सङ्गठन बनाकर माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड सरकार से पुल निर्माण कार्य शीघ्र कराने की मांग को लेकर एक पत्र भेजा है। कई बार लोगों ने सी एम पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई है, लेकिन पुल निर्माण टस से मस नहीं हो रहा है। पिछले दिनों रामनगर (नैनीताल) में G-20 सम्मेलन के तहत करोड़ों रुपये भवनों और सड़कों की दीवारों और जमीन में लगाए गए थे।काश ! यह G-20 सम्मेलन मोहान में हुआ होता तो हमारे राज्य के और केन्द्र के कर्णधार अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए युद्धस्तर पर धनगढ़ी और पनियाली गधेरों पर लीपापोती करके ही सही पुल निर्माण तो करा ही देते।

काश! कोई जनप्रतिनिधि वास्तव में ईमानदारी पूर्वक स्वयं को जनसेवक साबित करने वाला होता या जनता ही राजनीतिक दलों के दल-दल में न फंसकर कोई ठोस कदम उठाने का साहस कर चुकी होती तो प्रतिवर्ष 8-10 लोगों की बलि नहीं दी जाती इस गधेरे में। अब देखना है “धनगढ़ी पुल संघर्ष समिति” के प्रयास कितने सफल होते हैं? माननीय मुख्यमंत्री जी का हृदय कितना द्रवित होता है? इतने बड़े गढ़वाल -कुमाँऊ क्षेत्र के कितने भूत-वर्तमान और भविष्य के जनप्रतिनिधि कितनी तत्परता से इस पुल के निर्माण के लिए आवाज बुलन्द कर सकते हैं?