सरकार की मिलीभगत से उत्तराखंड राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण बना निरंकुश।
भिकियासैण (अल्मोड़ा) सरकार की मिलीभगत से उत्तराखंड राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण निरंकुश बन गया है। उत्तराखंड राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण नाम का एनजीओ बना है। पैंशनरों से वसूली गई धनराशि सीधे भेजी जाती है एक निजी बैंक में, राज्य का लेखा महानिदेशक भी नहीं कर सकता है इसके खर्चों की जांच।उत्तराखंड गवर्नमेंट पैशनर्स संगठन के अध्यक्ष तुला सिंह तड़ियाल ने एक प्रैस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि, उत्तराखंड में सरकार जैसी कोई चीज है, यहां चारों ओर भ्रष्टाचार कमीशनखोरी का राज चल रहा है, जिसके परिणामस्वरूप पूरे प्रदेश में छात्र नौजवान सड़कों पर हैं, महज अपनी असंवैधानिक कटौती को बन्द कराने को लेकर प्रदेश के सीनियर सिटीजन भी पिछले तीन वर्षों से सड़कों पर हैं इसी वर्ष जनवरी में यहां के पैंशनरों द्वारा दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक दिवसीय धरना प्रर्दशन के माध्यम से भारत के प्रधानमंत्री व महामहिम राष्ट्रपति महोदय को भी ज्ञापन दे चुके हैं, यहां भी ढांक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हुई है।
मा. उच्च न्यायालय नैनीताल में पिछले तीन वर्षों से कई याचिकाएं विचाराधीन हैं। 4 जनवरी 2023 को मा. उच्च न्यायालय द्वारा अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि, जो राजकीय पैंशनर्स राज्य स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत आच्छादित हैं, को किसी भी समय इस योजना से बाहर जाने की अनुमति (to opt out for the scheme, at any point of time) प्रदान की जाती है। मा. न्यायालय के आदेश के अनुपालन में 27 जनवरी 2023 को एक शासनादेश हुआ जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि, जो पैंशनर्स योजना से opt out का विकल्प चुनते हैं से अंशदान की कटौती तत्काल रोकते हुए पैंशनर्स से कवरेज के आगामी वर्षों में किसी भी प्रकार की कटौती नहीं की जाएगी परन्तु राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण ने सरकार के इस आदेश को कोई तवज्जो नहीं दी।
राजकीय पैंशनर परिषद के श्री गणपत सिंह बिष्ट द्वारा दुखी होकर मा. उच्च न्यायालय में जुलाई 2023 को एक अवमानना याचिका दायर कर दी अवमानना से बचने के लिए आनन फानन में सरकार ने 16 अगस्त 2023 को एक दूसरा शासनादेश जारी कर दिया परन्तु राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण ने सरकार के इन आदेशों को ठेंगा दिखा दिया। मा. न्यायालय को गुमराह करने के लिए 18, 19 अगस्त 2023 को प्रदेश के चुनिंदा समाचार पत्रों में इस आशय की एक विज्ञप्ति निकाली गई, परन्तु राज्य के कोषागार व डाटा सेंटर को इस आदेश की भनक तक नहीं लगने दी जिसके कारण राज्य के पैंशनर्स को योजना से बाहर निकलने के लिए काफी फजीहत उठानी पड़ रही है। इस बावत जब राज्य के कोषागारों से सम्पर्क स्थापित किया गया तो उनका कहना है कि इस सम्बंध में अभी कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुए हैं।
इसी तरह मा. न्यायालय को गुमराह करने के लिए एक विज्ञप्ति पूर्व में भी निकाली गई जिसमें योजना में सम्मिलित नहीं होने का विकल्प एक माह के अंदर प्रस्तुत करने को कहा गया है। इस षड़यंत्र के पीछे सरकार का मकसद असहाय वृद्ध, लाइलाज़ बिमारी से ग्रस्त पैंशनर्स, पारिवारिक पेंशनर्स तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले पैंशनर्स जहां अखबार तक नहीं पहुंच पाते हैं, ऐसे सभी लोगों को जबरन इस योजना मेंं शामिल कराकर अरबों रुपए की वसूली की गई जबकि सरकार को योजना में सम्मिलित होने के लिए विकल्प मांगना चाहिए था। सरकार के इस षड़यंत्र से हजारों पैंशनर्स ना मेंं विकल्प देने से चूक गए उनकी असंवैधानिक कटौती आज भी बदस्तूर जारी है। श्री तड़ियाल ने सरकार पर सवाल दागते हुए कहा अभी तक 90 प्रतिशत लोगों के गोल्डन कार्ड नहीं बने हैं, जिसके जरिए पैंशनर्स का इलाज होना है, अस्पतालों में इलाज नहीं मिल रहा है कटौती धड़ल्ले से हो रही है ? पैंशनर्स से वसूली गई धनराशि की प्राधिकरण में लूट मची हुई है। उन्होंने आगे कहा उत्तराखंड राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण नाम का यह एनजीओ सरकार में बैठे नेताओं व व्यूरोक्रेट्स ने अपनी उगाही के लिए इसको डिजाइन किया हुआ है। यदि सरकार सच्चे मायने में पैंशनर्स के हित में इस योजना को लांच करती तो इसका संचालन स्वयं अपने हाथ में लेती सरकार के पास भारी-भरकम स्वास्थ्य विभाग है, जो इस योजना को बहुत अच्छी तरह संचालित कर सकता था, परन्तु सरकार ने एक एनजीओ बनाकर करोड़ों रुपए का कारोबार निजी हाथों में सौंप दिया है, इतना ही नहीं, इस एनजीओ को राज्य के महालेखाकार के नियंत्रण से भी मुक्त कर पैंशनर्स से वसूली गई धनराशि को उड़ाने की खुली छूट दे दी है। श्री तड़ियाल ने इस निरंकुश सरकार के ख़िलाफ़ सभी पैंशनर्स संगठनों को एकजुट कर जबरदस्त जन आंदोलन चलाने का आह्वान किया है।
रिपोर्टर- एस. आर. चन्द्रा भिकियासैंण

