देघाट में कल सोमवार को मनाया जाएगा शहीद दिवस।

19 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देघाट में शहीद हुए थे दो लोग।

भिकियासैंण (अल्मोड़ा)। स्वाधीनता आंदोलन की निर्णायक लड़ाई में चौकोट क्षेत्र का बहुत बड़ा योगदान स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में दर्ज है। अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष में उतराखण्ड के सल्ट सालम खुमांण में भी अंग्रेजो के खिलाफ जो संघर्ष हुआ, उस विद्रोह की शुरुआत देघाट से मानी जाती है। इसी का जीता जागता उदाहण है देघाट का गोली काण्ड।

जब महात्मा गांधी जी के 9 अगस्त 1942 को अंग्रेजो के खिलाफ छेड़े गये सबसे निर्णायक आंदोलन अंग्रेजो भारत छोड़ो जिसको साइमन गो बैक के नाम से भी जाना जाता है। हमेशा अहिंसा को प्राथमिकता देने वाले महांत्मा गांधी जी ने भी इस आंदोलन की घोषणा करते हुए भारतीयों का आह्वान करते हुए नारा दिया – करो या मरो। इसी नारे का पूरे देश मे ऐसा असर हुआ कि देश के कोने – कोने में इसकी खबर आग की तरह फैल गई। आंदोलनकारी जगह-जगह पर बैठकें कर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह की रणनीति बनाने लग गए। 16 अगस्त को चौकौट क्षेत्र के सैंकड़ो आंदोलनकारी देघाट में खुसाल सिंह मनराल के नेतृत्त्व में बैठक करने हेतु इक्ट्ठा हुए।

बैठक मे इतने लोग जुट गये कि इससे घबरा कर स्थानीय पटवारी ने प्रमुख आंदोलन कारियों को पटवारी चौकी मे बन्द कर दिया। इस घटना की जब भनक क्षेत्र के अन्य लोगों को लगी तो 19 अगस्त को पटवारी चौकी के घेराव की योजना बना दी गयी। इसकी खबर तत्कालीन एसडीएम जानसन रानीखेत को लगी तो वह 17 अगस्त को ही रानीखेत से दलबल के साथ देघाट को चल पड़ा, और 19 अगस्त को देघाट में चौकी घेराव के दिन देघाट पहुंच गया।

19 अगस्त को बताया जाता है कि देघाट में अनगिनत आंदोलनकारी एकजुट हो चुके थे, जब आंदोलन कारियों ने अंग्रेज अधिकारी की एक नहीं सुनी तथा गिरफ्तार आंदोलन कारियों को छोड़ने की जिद पर अड़ गये, जबकी अंग्रेज अधिकारी देघाट क्षेत्र के प्रमुख आंदोलन कारियों को रानीखेत ले जाना चाहते थे, इसी पर इतना बड़ा विरोध प्रदर्शन हो गया कि भीड़ को नियन्त्रित करना कठिन हो गया, आंदोलनकारी पटवारी चौकी को अंग्रेज अधिकारियों सहित फूकने पर आमादा हो गये। हालात की नजाकत भाप अंग्रेज अधिकारी ने चौकी के भीतर से हवाई फाईरिंग शुरु करवा दी, हवाई फाईरिंग करते ही आंदोलन कारियों ने चौकी पर पथराव शुरु कर दिया। इसी गोलीवारी में भेलीपार निवासी हरिकृष्ण उप्रेती व खल्डुवा मल्ला निवासी हीरामणि बडौला शहादत को प्राप्त हो गये तथा दर्जनों लोग घायल हो गये।

आज उसी गोली काण्ड वाले स्थान पर देघाट मे शहीद स्मारक बना हुआ है, जहाँ प्रतिवर्ष 19 अगस्त को उक्त दोनों शहीदों की याद में श्रद्धांजलि सभा शहीद दिवस का भव्य आयोजन किया जाता है। इस वर्ष भी शहीद दिवस का भव्य आयोजन किया गया है। आयोजन समिति के सदस्य व पूर्व जिला पंचायत सदस्य एडवोकेट पूरन रजवार ने बताया कि स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में देघाट का आंदोलन अंग्रेजो भारत छोडो आंदोलन की पहली घटना के रुप में दर्ज है। देघाट के गोली काण्ड के बाद ही सम्पूर्ण उत्तराखंड के सालम सल्ट चनौदा आदि स्थानों पर भी आंदोलन भड़का, यह हम समस्त देघाट चौकोट वासियों के लिए अत्यन्त गर्व की बात है।

19 अगस्त के दिन उन्हीं अमर शहीदों की याद में देघाट में भव्य शहीद मेले का आयोजन की सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी है, जिसमें अमर शहीदों के इतिहास को जानने का अवसर नई पीढ़ी व आम जनता को मिलेगा‌। उन्होनें बताया कि चौकोट की भूमि का स्वाधीनता संग्राम के इतिहास मे खास योगदान रहा है। देघाट स्याल्दे क्षेत्र में दर्जनों संवतंत्रता सेनानी रहे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए बहुत बड़ी यातनाऐं सही, उनमें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी खुसाल सिंह मनराल, खीमानंद, गंगासिंह, चिन्तामणि ढौढियाल, देवी दत्त, दीवान सिंह, नन्दकिशोर, प्रेम सिंह, बचे सिंह, बद्रीद्त काण्डपाल, ज्योतिराम, भगत सिंह, राम दत्त, राधा देवी, लक्ष्मण सिंह, लालसिंह, हर्ष देव बहुगुणा आदि प्रमुख स्वाधीनता सेनानियों के सम्मान में आजादी के 25वीं वर्षगाठ पर भारत सरकार द्वारा एक सम्मान स्तम्भ शहीद स्मारक देघाट में स्थापित किया है।

रिपोर्टर- एस. आर. चन्द्रा भिकियासैंण

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