राजकीय महाविद्यालय शीतलाखेत में “बोधिसत्व व्याख्यान माला” कार्यक्रम हुआ आयोजित।
अल्मोड़ा। राजकीय महाविद्यालय शीतलाखेत (अल्मोड़ा) के व्याख्यान कक्ष में आयोजित “बोधिसत्व व्याख्यान माला” कार्यक्रम का प्रारंभ माँ सरस्वती की वन्दना करते हुए कार्यक्रम के संयोजक डॉ. खीमराज जोशी द्वारा व्याख्यान देने हेतु संस्कृत विभाग के प्रभारी डॉ. प्रकाश चन्द्र जांगी का परिचय देते हुए उन्हें व्याख्यान हेतु आमंत्रित किया गया। मुख्य वक्ता जांगी जी द्वारा “आधुनिक परिदृश्य में जीवन मूल्यों की प्रासंगिकता” विषय पर अपना व्याख्यान देते हुए बताया गया कि किस प्रकार आधुनिक समय में मनुष्य के जीवन से नैतिक मूल्यों का ह्रास व अवमूल्यन होता जा रहा है। अतः हमें आने वाली पीढ़ी को अपनी पुरातन संस्कृति एवं भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़कर संस्कारवान बनाने की आवश्यकता है।
नैतिक मूल्य, समाज के मानदंडों के मुताबिक सही और गलत की भावनाएं होती है। ये मूल्य किसी व्यक्ति के चरित्र, आचार, और व्यवहार को निर्धारित करते है। नैतिक मूल्यों का महत्व इस बात में है कि ये हमें सही और गलत के बीच अंतर करने में मदद करते है। ये मूल्य, व्यक्ति के स्वभाव और विचारों को प्रभावित करते है और समाज के साथ संबंध स्थापित करते है। नैतिक मूल्यों का महत्व इस बात में है कि ये हमें जीवन के सभी चरणों में हमारे व्यक्तिगत विकल्पों में मदद करते है। ये मूल्य, हमें परिस्थितियों को समझने में मदद करते है और समाज में बड़े पैमाने पर सक्रिय योगदानकर्ता बनने की हमारी क्षमताओं को विकसित करते है।
आज व्यक्तित्व में आ रहे बदलाव, बढ़ती हिंसक प्रवृत्ति, स्व. केंद्रित भौतिकता पूर्ण जीवन यापन, पाश्चात्य संस्कृति के प्रति बढ़ते लगाव, परस्पर इच्छा व द्वेष की भावना, एक दूसरे से अधिक धनार्जन की लालसा, सभी भोग विलास की वस्तुएं जुटाने की होड़ में नैतिक मूल्यों का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है, जिस पर विचार कर त्वरित समाधान खोजना अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक माता-पिता को स्वयं के व्यवहार को तटस्थ होकर सुधारना होगा, जिससे कि वह अपने बच्चों को सही जीवन मूल्यों से पूर्ण कर एक आदर्श जीवन जीने हेतु प्रेरित कर सके। सत्य, परोपकार, क्षमाभाव, कर्तव्यबोध, सदाचार, न्याय, ईमानदारी, सम्यक् व्यवहार, विनम्रता, धैर्य, सहिष्णुता आदि नैतिक मूल्यों से जुड़े अनेकानेक उदाहरण हमें अपनी वैदिक संस्कृति से प्राप्त होते है, जिन्हें आत्मसात कर हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते है।
तैत्त्तिरीय उपनिषद् की शिक्षावली में सत्य के मार्ग पर चलने व अपने कर्तव्य का पूरी ईमानदारी के साथ पालन करने के संबंध में पंक्तियां इस प्रकार है – सत्यं वद, धर्मं चर, सत्यान्न प्रमदितव्यम्, धर्मान्न प्रमदितव्यम्। परोपकार के संदर्भ में उन्होंने रतन नवल टाटा का उदाहरण देते हुए कहा कि जब देश कोविड नामक महामारी से जूझ रहा था तो उस समय रतन टाटा ने लोगों के स्वास्थ्य चिकित्सा के लिए 1500 करोड रुपए की धनराशि पीएम केयर फंड में परोपकार स्वरुप प्रदान की। इससे पूर्व जमशेदजी टाटा ने भी शिक्षा के क्षेत्र में चिकित्सा के क्षेत्र में लोगों के जीवन स्तर में सुधार हेतु परोपकार स्वरुप धनराशियां प्रदान की थी।
आज स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, बिड़ला, अजीज प्रेम जी, बिल गेट्स, वारेन बफे जैसे लोगों के जीवन से प्रेरणा लेते हुए सत्य के मार्ग पर चलते हुए लोगों की भलाई के लिए परोपकार के कार्य करने है और अपने दायित्वों का अपने कर्तव्य का पूरी ईमानदारी के साथ जिम्मेदारी के साथ निर्वहन करना है, जिससे कि हम देश को आत्मनिर्भर व विश्व गुरु बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान प्रदान कर सकते है। कार्यक्रम में प्राचार्य एल. पी. वर्मा, प्रो. अनुपमा तिवारी, डॉ. सीमा प्रिया, डॉ. प्रकाश चंद्र जांगी, डॉ. दीपिका आर्या, डॉ. खीमराज जोशी, डॉ. दिवाकर टम्टा, डॉ. वसुंधरा लस्पाल एवम् समस्त छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।