रेशम पालन से बढ़ाई अपनी आय, मनरेगा से भी मिला सहयोग।
अल्मोड़ा। सहायक निदेशक रेशम, संजय काला ने जानकारी देते हुए बताया कि मनरेगा योजनान्तर्गत रेशम कीटपालन योजना एवं शहतूत वृक्षारोपण योजना की आवेदक माया देवी ग्राम बमनस्वाल वि.ख. धौलादेवी द्वारा वर्ष 2019-20 में 450 शहतूत वृक्षों का रोपण किया गया था, जिसमें प्रथम वर्ष उनको 300 शहतूत के पौधे विभाग द्वारा नि:शुल्क उपलब्ध कराए गए। द्वितीय वर्ष गैप फिलिंग में उनको विभाग द्वारा 150 शहतूत पौधे उपलब्ध कराए गए, शहतूत पौधों का उनके द्वारा अच्छी तरह से रख रखाव किया गया। शहतूत पौधों को लगाना, सिंचाई, निराई-गुड़ाई, गोबर की खाद डालना एवं समय-समय पर उनके द्वारा पौधों की ट्रिमिंग-प्रूनिंग की गई, जिसके फलस्वरुप उनको मनरेगा कन्वर्जेन्स के माध्यम से ₹16,000/- का भुगतान किया गया।
वर्ष 2020-21 में शहतूत पौधों की गुणवत्ता के आधार पर उनका चयन मनरेगा योजनान्तर्गत एवं CDP योजना के तहत उनको रेशम कीटपालन भवन के तहत अनुदान राशि ₹90,000/- का भुगतान हुआ। वर्ष 2022-23 में रेशम कीटपालन भवन बनाने के पश्चात विभाग द्वारा उन्हें कीटपालन उपकरण जैसे ट्रे. माउंटेज, रैक आदि उपकरण उपलब्ध कराए गए। अच्छे शहतूत पौध की उपलब्धता के आधार पर उनको रेशम कीट उपलब्ध कराए गए, जिससे कि उनके द्वारा बसन्त फसल एवं मानसून फसल में रेशम कोया उत्पादित किया जा रहा है, जिससे कि उनको वार्षिक आय में ₹25,000/- से ₹30,000/- तक की बढ़ोतरी हुई है।
साथ में जब कीटपालन कार्य न हों, तो शहतूत पौध की पत्तीयों का प्रयोग उनके द्वारा चारे के रुप में भी किया जा रहा है। शहतूत की पत्तीयों में उच्च मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जिससे कि उनके जो दुधारु पशु है, उनमें दुग्ध की बढ़ोत्तरी हो रही है। इस प्रकार सिल्क उत्पादन के साथ अच्छी मात्रा में मिल्क उत्पादन कर भी अपनी आय में बढ़ोत्तरी कर रहे है।