मातृभाषा कुमाऊंनी गढ़वाली के संरक्षण संवर्धन के लिए मातृभाषा कक्षा का हुआ शुभारंभ।
लोहाघाट (चम्पावत)। मातृभाषा हमारी अपनी पहचान है। मातृभाषा कुमाऊंनी की कक्षाएँ केन्द्र राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय पऊ में केन्द्र प्रमुख ललित मोहन तिवारी एवं पुष्कर नाथ गोस्वामी के सहयोग से मातृभाषा कक्षाओं का संचालन बच्चों को अतिरिक्त समय प्रदान कर किया जा रहा है। मातृभाषा कक्षा का शुभारंभ प्रधानाध्यापिका सुशीला चौबे द्वारा ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख दीप प्रज्जवलन के साथ किया गया। उन्होंने अपने संबोधन में अपनी दुदबोलि, मातृभाषा कुमाऊंनी का संरक्षण, संवर्धन करना हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है, की बात को प्रमुखता से रखा।
उन्होंने मातृभाषा कक्षा का संचालन कर रहे केन्द्र प्रमुख व मातृभाषा शिक्षक ललित मोहन तिवारी एवं पुष्कर नाथ गोस्वामी के इस प्रयास की सराहना की व इस कक्षा में उपस्थित वंदना जोशी, मदन लाल, शालिनी, पूजा देवी, कमला देवी आदि का भी सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया। मातृभाषा कक्षा शिक्षण में सहयोग कर रहे शिक्षक ललित मोहन तिवारी द्वारा अपनी मातृभाषा के संरक्षण, संवर्द्धन के लिए इन कक्षाओं को उपयोगी माना व उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी आँगनबाड़ी व प्राथमिक स्तर की कक्षाओं में मातृभाषा में शिक्षण दिए जाने का समर्थन करती है, इस बात का भी उल्लेख अपने वक्तव्य में किया।

सहयोगी शिक्षक गोस्वामी द्वारा भी अपनी मातृभाषा को संरक्षित, संवर्धित करने की बात को प्रमुखता से रखा गया व मातृभाषा कक्षा की उपयोगिता पर भी अपनी बात रखने के साथ इस बात पर चिंता जाहिर की, कि आज के बच्चे अपनी साहित्य- संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं, उन्हें अपनी संस्कृति से जोड़े रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। मातृभाषा कक्षा का शुभारम्भ कुमाऊंनी सरस्वती वंदना “दैणी है जाए माँ सरस्वती” के साथ की गई। इसके उपरांत प्रतिभागी बच्चों व शिक्षकों द्वारा समुधुर स्वर में सामुहिक रुप से “य हमरि मातृभूमि, य हमरि पितृभूमि” का गायन किया गया।
इसके उपरांत परिचय सत्र शुरु हुआ। सभी प्रतिभागी बच्चों व शिक्षकों द्वारा अपना परिचय कुमाऊंनी में दिया गया। इसके बाद केन्द्र प्रमुख तिवारी द्वारा कुमाऊंनी भाषा के महत्व को बताते हुए इस बात पर जोर दिया कि आज के समय में हमें अपनी कुमाऊंनी भाषा को संरक्षण देने की अत्यधिक आवश्यकता है। आज हम अपने घरों में कुमाऊंनी भाषा का बहुत कम मात्रा में प्रयोग करते हैं, जबकि अन्य प्रदेशों लोग जैसे – पंजाबी अपनी पंजाबी में असोम वाले असमिया में बात करते हैं। हम चाहे जितनी भाषा सीखें, बोले पर अपनी मातृभाषा को कभी ना भूलें। हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए। यह हमारी मातृभाषा होने के साथ हमारी अपनी पहचान है।
इसके उपरांत बच्चों को बहुत सारे कुमाऊंनी के शब्दों को उनके हिंदी अर्थ के साथ लिखाए गए। मातृभाषा कक्षा के पहले दिन के समापन पर गोस्वामी द्वारा उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच दिल्ली के संरक्षक विनोद बछेती, संयोजक दिनेश ध्यानी, रमेश हितैषी, दयाल सिंह नेगी, डॉ. सी. पी. फुलोरिया दून विश्वविद्यालय, देहरादून से डॉ. हरीश अण्ड़ोला, डॉ. आर. के. ठकुराल, डॉ. हयात रावत, दामोदर जोशी ‘देवांशु’, गिरीश चन्द्र बिष्ट ‘हँसमुख’, जगमोहन ‘जगमोरा’, डॉ. सरस्वती कोहली, उदय किरौला, डॉ. उमेश चमोला, डॉ. नन्दकिशोर हटवाल, मोहन जोशी, रमेश सोनी, पूरन चन्द्र काण्डपाल का आभार व्यक्त करने के साथ मातृभाषा कक्षा संचालन के मुख्य संयोजक व कुमाऊंनी साहित्यकार कृपाल सिंह शीला व सभी सहयोगी अतिथियों, शिक्षकों, अभिभावकों व प्रतिभागी बच्चों का भी सहयोग के लिए हार्दिक आभार व्यक्त किया गया। मातृभाषा कक्षा संचालक ललित तिवारी द्वारा बताया गया कि ये कक्षाएँ माह मई 2025 से माह जून 2025 तक संचालित होंगी। मातृभाषा के प्रथम दिन में 25 प्रतिभागी बच्चों ने प्रतिभाग किया। मातृभाषा कक्षा में प्रियांशु, गरिमा, प्रभात शैली, पारस, धीरज, प्रिया, सौरभ, साहिल कुमार, शिवांश आदि द्वारा सक्रिय प्रतिभाग किया गया। बच्चों को सूक्ष्म जलपान कराने के साथ प्रथम दिवस की मातृभाषा कक्षा का समापन हुआ।
रिपोर्टर- एस. आर. चन्द्रा भिकियासैंण