अगर आप पहाड़ (उत्तराखंड) घूमने आ रहे हैं तो काफल अवश्य खायें ये है इसके फायदे।

भिकियासैण (अल्मोड़ा) काफल के छाल, फल, बीज, फूल सभी का इस्तेमाल आयुर्विज्ञान में किया जाता है. काफल सांस संबंधी समस्याओं, डायबिटीज, पाइल्स, मोटापा, सूजन, जलन, मुंह में छाले, मूत्रदोष, बुखार, अपच और शुक्राणु के लिए फायदेमंद होने के साथ ही दर्द निवारण में उत्तम है। देवभूमि के इस फल के बारें में पहाड़ के ज्यादातर लोग जानते होंगे, लेकिन निचले इलाके के लोग इस फल के बारें में बेहद कम जानते है। तो आज हम इस फल के बारें में बात करेंगे, इसे पहाड़ के लोग बेहद पंसद करते है और करें भी क्यों ना ये होते ही इतने स्वादिष्ट है। ये फल खाने में जितना स्वादिष्ट है, उतना ही यह गुणों से भरपुर भी है। चलिए अब आपको हम इस फल का नाम बताते है। इस फल का नाम है ‘काफल’ जी हाँ काफल पहाड़ी लोगों की पहली पसंद है। यह फल लाल रंग का औऱ आकार में बेहद छोटा होता है..लेकिन इसके साइज़ पर मत जाएगा, ये जितना छोटा है उतने ही बड़े इसके गुण है। काफल में अनेक औषधीय गुण पाए जाते है। यह फल एक जड़ी-बूटी के समान है। काफल मधुमेह, मोटापा,जलन,सूजन.पाइल्स, बुखार, अपच,शुक्राणु आदि के लिए बेहद फायदे मंद है।काफल से आप सरदर्द जैसी दिक्कत को भी दूर कर सकते है। इसका सरदर्द के लिए इस्तेमाल करने का तरीका यह है, कि आपको काफल के छाल का चूर्ण बनाकर नाक से सांस लेने पर कफ से जन्मे सरदर्द से छुटकारा पा सकते है। इसके अलावा काफल आंखों के लिुए भी बेहद फायदेमंद है। जैसे, आंखों का लाल होना, आंखों में दर्द होना, रतौंधी।आप काफल से बना काज़ल इन विकारों को दूर करने में उपयोग कर सकते है। नाक संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए भी काफल का प्रयोग किया जाता है। साथ ही कान दर्द के लिए भी काफल फायदें वाली चीज है। इसके अलावा, दांत दर्द, खांसी, मस्सा, नपुंसकता, पेट दर्द, लकवा,बुखार, अधिक पसीना तथा सूजन में भी काफल कारगार साबित होता है।

अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का नाम ही नहीं ले रहे तो काफल का घरेलू उपाय बहुत काम आयेगा। 1-2 ग्राम कायफल चूर्ण को दो गुना मधु के साथ मिलाकर सेवन करने से दस्त में लाभ होता है। 10-30 मिली कायफल के छाल का काढ़ा बनाकर का सेवन करने से दस्त, प्रवाहिका तथा जठरांत्र संक्रमण में लाभ होता है। कटफल तथा बेल गिरी का काढ़ा बनाकर, 10-30 मिली मात्रा में पिलाने से दस्त से राहत मिलता है।कायफल तने के छाल से घाव को धोने के बाद समान भाग अर्जुन, गूलर, पीपल, लोध्र, जामुन तथा काफल छाल से बने चूर्ण को व्रण या घाव पर डालने से अल्सर का घाव जल्दी भरता है। अगर आपको काफल खाने है तो आपको देवभूमि ही आना पड़ेगा। इसके पेड़ काफी बड़े और ठंडे छायादार स्थानों में होते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में मजबूत अर्थतंत्र दे सकने की क्षमता रखने वाले काफल को आयुर्वेद में ‘कायफल’ नाम से जाना जाता है। इसकी छाल में मायरीसीटीन, माइरीसीट्रिन व ग्लाइकोसाइड पाया जाता है। यह हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और अन्य पहाड़ी इलाकों में पाए जाते है।काफल को भारत के विभिन्न प्रांतों में काफल को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। जैसे- संस्कृत में कट्फल, सोमवल्क, महावल्कल, कैटर्य , कुम्भिका, श्रीपर्णिका आदि हिंदी में कायफल, काफल उर्दू में किरिशिवनि, गुजराती में कारीफल और तमिल में मरुदम पट्टई, तेलगु में कैदर्यमु और नेपाली में काफल को कोबुसी बोलते है।

रिपोर्टर- एस. आर. चन्द्रा भिकियासैंण

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