उत्तराखंड नाट्य महोत्सव में ‘राजुला मालूशाही’ का आयोजित हुआ मंचन।
दिल्ली। गढ़वाली कुमाऊनी व जौनसारी अकादमी-दिल्ली सरकार के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय “उत्तराखंड नाट्य महोत्सव” का समापन मुक्तधारा सभागार, बंग संस्कृति भवन गोल मार्केट, नई दिल्ली में 29 अक्टूबर 2023 को देर रात्री तक सम्पन्न हुआ। दो दिवसीय उत्तराखंड नाट्य महोत्सव में 4 नाटिकाओं का मंचन किया गया। पहले दिन नाटक ‘आछरी’ व ‘राजुला मालूशाही’ का मंचन हुआ व दूसरे दिन नाटक ‘सरकारी ब्यौला’ व ‘सातों आठों’ की प्रस्तुति हुई।
नाट्य महोत्सव के पहले दिन ‘मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एवम विज्ञान शोध समिति’ के ‘लोकरंग टीम’ द्वारा ‘राजुला मालूशाही’ नाटक की प्रस्तुति हुई। खचाखच भरे सभागार में नाटक को दर्शकों की खूब वाहवाही मिली। नाटक का निर्देशन मीना पांडेय ने किया। नाटक के निर्देशक मीना पांडेय ने बताया कि सन् 1980 में मोहन उप्रेती जी ने उत्तराखण्ड लोक गाथा के मंचन की परंपरा की शुरुआत की। आज 40 दशक बाद हम देख सकते हैं कि विभिन्न संस्थाओं द्वारा ‘राजुला मालूशाही’ नाटक का प्रदर्शन विभिन्न मंचों पर किया गया है। संगीत के क्षेत्र में एक लंबी लकीर जो उप्रेती जी ने खींच दी है, उसे स्पर्श कर पाना तो संभव नहीं है, लेकिन एक निर्देशक के तौर पर अपनी दृष्टि से कथा कहने में या कुछ नया जोड़ने में मैं कितनी सक्षम हुई हूँ वह मेरे निर्देशन की कसौटी है।
‘राजुला मालूशाही’ कुमाऊँ की एक सुप्रसिद्ध लोक गाथा है जिसे सदियों से विभिन्न लोग गायक अपने कंठों द्वारा गाते आऐ हैं। यह कथा दो अलग-अलग संस्कृतियों व दो वर्गों के मिलने की कथा है। इस लोकगाथा की सबसे रोचक बात यह है कि वह जितने कंठों से होकर गुजरी है, इसमें कुछ नया जुड़ता चला गया। इसीलिए आज इस कथा के 40 से भी ज्यादा संस्करण मौजूद है। गांगुली के रूप में रेखा शर्मा, राजुला के रूप मनीषा भारद्वाज व 4 वर्षीय नन्ही राजुला समृद्धि के अभिनय ने दर्शकों का दिल जीत लिया। नाटक के अन्य प्रमुख पात्रों में चंद्र मोहन केमनी, शोभा पिलखवाल, इतेंद्र भारद्वाज, ज्योति, नीमा, गायत्री, उमा पाण्डेय, मधु, सृजन, काम्या, श्रीनिका, ऐश्वर्या, मुन्नी, पूजा, रेखा, प्रेमा व तारा आदि भारी संख्या मौजूद थे।
नाटक का संगीत निर्देशन चन्द्र शेखर पांडे व जीवन चन्द्र कलखुंड़िया ने किया था।संगीत नाटक अकादमी पुरूस्कार से पुरस्कृत वरिष्ठ रंगकर्मी भूपेश जोशी ने कहा कि- मीना पांडे के निर्देशन में इस प्रसिद्ध लोकगाथा का मंचन देखने का अवसर मिला, लोकसंगीत व लोक धुनें नाटक के अनुकूल थी, परंतु हर दृश्य में लगातार चल रहा पार्श्व संगीत प्रभाव लाउड था, जिसे कम किया जा सकता था, प्रकाश परिकल्पना अच्छी थी कई कलाकारों का अभिनय भी अच्छा रहा, जिनमें मुख्यतः सृजन पाण्डेय का अभिनय सराहनीय था, नाटक के प्रस्तुतिकरण में कुमाउनी रामलीला शैली का पुट था, दृश्य परिवर्तन में समय अधिक लगा, जिसे कम किया जा सकता है।अधिकतर भूमिकाओं में महिलाओं का होना सबसे अधिक सराहनीय है, या तो सभी भूमिकाओं में महिलाएं ही हों या फिर पुरूष पात्र पुरूषों द्वारा और महिला पात्र महिलाओं द्वारा निभाए जाने चाहिए। एक बेहतरीन प्रयास हेतु निर्देशिका मीना पांडे और उनकी टीम को बहुत बधाई।
वरिष्ठ कवि रघुबरदत्त शर्मा ‘राघव’ ने बताया कि- “मोहन उप्रेती लोक संस्कृति कला एंव विज्ञान शोध समिति” की प्रस्तुति “राजुला मालूशाही” का मंचन मुक्तधारा सभागार गोल मार्किट देखकर अभिभूत हूँ, वास्तव में कुमाँऊ की इस प्रसिद्ध प्रेम गाथा को मीना पाण्डेय ने जिस खूबसूरत अंदाज़ से निर्देशित किया है उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है। गांगुली के रुप में रेखा शर्मा, राजुला के रुप में मनीषा भारद्वाज व नन्ही राजुला ने अपनी अदाकारी से मन मोह लिया। हां सुनपत शाैक के रुप में चन्द्र मोहन की अदाकारी तो अच्छी थी लेकिन थोड़ा भाषाई भटकाव रहा। कुल मिलाकर नाटक को गीत-संगीत व मंचन की दृष्टि से श्रेष्ठ कहा जा सकता है ।
मीना पाण्डेय ने बताया कि संस्था द्वारा ‘लोकरंग कार्यशाला’ के दौरान इस नाटक को तैयार किया गया। इसमें भाग लेने वाले सभी कलाकार अव्यावसायिक हैं और शौकिया तौर पर अभिनय से जुडे हुए हैं। नाटक की परिकल्पना व आलेख भी मीना पाण्डेय का ही रहा। इस प्रस्तुति को लोक कथा मंचन के क्षेत्र में एक नवीन प्रयोग के रूप मे महत्वपूर्ण कहा जा सकता है जहां पात्रों के चयन में पुरुष पात्रों के अभिनय में भी अधिकांश महिला कलाकारों को प्रतिनिधित्व दिया गया। प्रकाश, ध्वनि व मंच मंचसज्जा में सहयोग कैलाश पाण्डेय, सुन्दर सिंह घुघत्याल, राकेश शर्मा, नीरज बहुखंडी व नरेश देवरानी का रहा।