हल्द्वानी के इस किसान ने किया कमाल, बनाया प्राकृतिक बीज बम, खेती के लिए बनेगा वरदान।

हल्द्वानी (नैनीताल) हल्द्वानी के गौलापार के रहने वाले किसान नरेंद्र मेहर हमेशा से उन्नत खेती के प्रयोग के लिए जाने जाते हैं। प्रयोगधर्मी और नवाचारी किसान के रुप में अपनी पहचान बनाने वाले किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने कृषि के क्षेत्र में एक और नवाचार किया है। इस बार उन्होंने गोबर, राख और गोमूत्र से एक ऐसे बीज बम को तैयार किया है जो प्राकृतिक खेती के साथ ही किसानों के लिए हर दृष्टि से लाभप्रद है जो प्राकृतिक खेती के साथ ही जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और उत्पादन लागत कम करने का एक नायाब तरीका है। हल्द्वानी के गौलापार के रहने वाले प्रगतिशील किसान नरेंद मेहरा कृषि नवाचार के क्षेत्र में हासिल कर चुके हैं। किसान नरेंद्र मेहरा ने बताया कि वर्तमान समय में खेतिहर मजदूरों की कमी होने के कारण खेती करना बहुत कठिन होता जा रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने इसका विकल्प बीज बम के रुप में खोजा गया।

बीज बम बनाने की विधि एवं लाभ-

उन्होंने बताया कि बीज बम किसानों के लिए कारगर साबित हो सकता है बीज बम बनाने के लिए 10 किलोग्राम गाय का गोबर 2 किलो लकड़ी की राख और 2 लीटर गोमूत्र की आवश्यकता होती है। इन तीनों चीजों को मिलाकर बहुत अच्छी तरह गूंथ लिया जाता है और उसके पश्चात अखरोट के दानों के बराबर आकार की गोलियां बना ली जाती है तथा उनमें बीज रखने के लिए छेद बना लिया जाता है। उसके पश्चात उन्हें धूप में इतना सुखा लिया जाता है कि उनकी पूरी नमी खत्म हो जाए, तत्पश्चात उन्हें सुरक्षित स्थान पर रख लिया जाता है। यह कार्य अकेला व्यक्ति जब भी उसे समय मिले कर सकता है। इस बम रुपी इन गोलियों में राख की उपलब्धता होने की वजह से कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, सल्फर और फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में मिल जाती है जो मृदा का पीएच मान बढ़ाने में सहायक होता है। इन बीज बम की गोलियों में जल धारण क्षमता अत्यधिक होती है कम से कम 15 से 20 दिनों तक एक पौधे को पर्याप्त मात्रा में नमी देने के लिए इसमें जल संग्रह हो जाता है।

किसान नरेंद्र मेहरा की मुताबिक यदि मई माह में हमें धान के बीजों का रोपण करना हो तो हम सूखी जमीन पर ही इन बम गोले के छिद्रों में बीज को भरकर 2% ट्राईकोडरमा के घोल में 24 घंटे तक के लिए भिगो देते हैं। एक कुशल मजदूर श्री विधि से 2 दिन में एक एकड़ खेत में धान का रोपण कर सकता है। इस प्रकार किसान जल और मानव श्रम की बचत कर अपनी लागत को कम कर सकते हैं। इस विधि से जहां एक ओर बीज दर में कमी आती है वहीं उत्पादन अधिक होता है। उन्होंने बताया कि पूर्ण रूप से सूखे हुए इन बीज बम के अंदर बीजों को सुरक्षित और संरक्षित भी रखा जा सकता है।

यह पद्धति वर्षा आधारित पार्वतीय खेती के लिए वरदान साबित हो सकती है। इस पद्धति से मोटे अनाजों की खेती कर अधिक लाभ कमाए जा सकता है। किसान नरेंद्र मेहरा द्वारा इस पद्धति से प्रयोग के तौर पर धान की खेती में प्रयोग किया गया है जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। किसान नरेंद्र मेहरा के मुताबिक यदि एक वर्ग मीटर भूमि पर 100 बीज बम में सौ अनाज के दानों को बोया जाए तो परंपरागत तरीके से की गई खेती से कम से कम 30% अधिक उत्पादन पाया जाएगा। जबकि आमतौर पर गेहूं और खेती के लिए एक एकड़ में 40 किलो के करीब बीज की आवश्यकता पड़ती है लेकिन इस विधि से अगर धन और गेहूं की खेती की जाए तो एक एकड़ खेत के बुवाई के लिए 3 से 5 किलो की बीज की आवश्यकता पड़ेगी। किसान नरेंद्र मेहरा ने बताया कि इस प्रयोग के सफलता से वह काफी उत्साहित है और भविष्य में इस विधि से बड़े स्तर पर अब अपनी खेती को करेंगे और लोगों को भी इस विधि से खेती करने के लिए जागरुक करेंगे।

रिपोर्टर- एस. आर. चन्द्रा भिकियासैंण

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