पुरानी पेंशन बहाली के लिए रामलीला मैदान से शंखनाद। (विशेष संवाददाता – कुन्दन)
नई दिल्ली। पुरानी पेंशन बहाली करने के लिए रविवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में “शंखनाद रैली” का आयोजन किया गया। समूचे भारतवर्ष के 28 राज्यों और 8 केन्द्र शासित प्रदेशों से 5 लाख से अधिक शिक्षक-कर्मचारी शंखनाद रैली में जोश खरोश के साथ सरकार से पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर एकत्रित हुए। इस ऐतिहासिक रैली में देश भर के सभी विभागों के कर्मचारी 2024 के लोकसभा चुनाव में सरकार से आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार हैं। शंखनाद रैली में NMOPS संगठन के कर्मचारियों को किसान सभा सहित अनेक सँगठनों का सहयोग प्राप्त है। सभी स्थानीय, जिलों और राज्यों के उद्योग-व्यापार मंडलों के सदस्यों से नैतिक समर्थन प्राप्त आंदोलन देश की राजनीति की दिशा और दशा को निर्धारित करेगी। 2023 के अन्त तक राजस्थान, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इन राज्यों के चुनावों पर भी पंजाब और हिमाचल प्रदेश की तरह पुरानी पेंशन बहाली के लिए चलाए जा रहे आंदोलन का प्रभाव पड़ा तो एन डी ए की झोली खाली होती जाएगी और भाजपा का “कांग्रेस मुक्त भारत” का सपना चूर होने में कोई समय नहीं बचने वाला है। ऑल टीचर्स इम्प्लाइज एसोसिएशन (अटेवा) और नेशनल मूवमेंट फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम (एनएमओपीएस) ने सोशल मीडिया पर हैशटैग वोट फॉर ओपीएस को ट्रेंड कराया। जिसमे कहा गया कि पुरानी पेंशन को जो भी घोषणा पत्र में रखेगा, उसी के साथ शिक्षक कर्मचारी जाएगा।
सोशल मीडिया में आंदोलन की सफलता के बाद NPS के राष्ट्रीय अध्यक्ष विजय बन्धु ने “NPS -निजीकरण भारत छोड़ो” रथयात्रा निकालकर पूरे देश में जनजागृति फैलाई। यात्रा का उद्देश्य देश की जनता को निजीकरण और नई पेंशन योजना से होने वाली हानि से अवगत कराते हुए पुरानी पेंशन बहाली और सरकारी उपक्रमों को व्यवस्थित कराने के लिए सरकार को सचेत करना है। रथयात्रा में भारी समर्थन मिलने के बाद 1 अक्टूबर की रैली तय की गई। इसका लम्बे समय से प्रचार प्रसार किया गया था। इसी कारण लाखों लोगों का जनसैलाब दिल्ली में उमड़ा हुआ है। बता दें कि कर्मचारी 20 से 40 वर्ष सरकारी सेवा करते थे तो उन्हें वृद्धावस्था में सम्मामजनक तरीके से अपने और स्वयं पर आश्रित परिजनों के भरण-पोषण के लिए सेवा के अन्तिम दिवस के वेतन का 50% पेंशन के रुप में मिलता था लेकिन वर्ष 2004 में केन्द्र सरकार ने केवल कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना बन्द कर एक नई पेंशन योजना लागू कर दी थी जबकि सांसदों-विधायकों और अन्य जनप्रतिनिधियों के लिए आज भी पुरानी पेंशन योजना ही लागू है। इसके अतिरिक्त यदि कोई जनप्रतिनिधि एक से अधिक बार किसी सदन के लिए चयनित होता है तो उसके लिए प्रत्येक कार्यकाल के लिए अलग-पेंशन अनुमन्य होती है। इस प्रकार देश भर में अनेक नेतागण 2 से 10 तक पेंशन प्राप्त कर रहे हैं।
इस प्रकार स्वयं को जनसेवक कहने वाले नेतागण इस देश में स्वयं के हित में और कर्मचारियों के अनहित में नीतियाँ बना रहे हैं। सरकारी संस्थानों का भली भांति संचालन और व्यवस्थापन की बजाय सरकारी उपक्रमों को पूंजीपतियों के हाथों में सौंपकर पूंजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा देते हुए लोकतन्त्र का ह्रास कर रहे हैं।स्वयं किसी जिम्मेदारी का निर्वहन न करते हुए निजीकरण को बढ़ावा देना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। आज आम जनता को सरकार की इन कुनीतियों को समझना चाहिए और नई पेंशन योजना तथा निजीकरण का विरोध करना चाहिए। हर व्यक्ति अपने पाल्यों को अच्छी रोजगारी नौकरी प्राप्त कराने के उद्देश्य से अच्छी शिक्षा देना चाहता है लेकिन सरकारी स्कूलों में संसाधनों की कमी करते हुए निजी स्कूलों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जहाँ भारी भरकम फीस जमा करनी पड़ती है।इसी प्रकार सरकारी अस्पतालों को सरकार सुव्यवस्थित न करके निजी अस्पतालों को बढ़ावा दे रही है। निजीकरण सरकार की विफलता का परिचायक है।
इस बात को केवल देश का कर्मचारी वर्ग गहनता से समझ रहा है। जिस दिन देश का आम नागरिक इस बात को समझ जाएगा और देश के विकास योजनाओं के बारे में मन्थन करने लगेगा, उस दिन देश में जनांदोलन खड़ा हो जाएगा और सरकारें अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए सरकारी संस्थाओं का भली भांति संचालन करने को मजबूर हो जाएंगी। सरकारी संस्थाओं में किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार और कोताही के लिए कर्मचारियों और अधिकारियों पर लगाम कसना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है।स्वयं की जिम्मेदारी से सरकार को बचना नहीं चाहिए। तभी देश विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा हो सकता है।