भिकियासैण (अल्मोडा़) विकास खंड स्याल्दे के सुप्रसिद्घ देघाट चौकोट का चैत्राष्टमी मेला शाँन्तिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हो गया है। देघाट चैत्र मास की सप्तमी व अष्टमी दिवश को आयोजित होता है, सैकड़ों बर्षो से आयोजित होते आ रहे इस प्रसिद्ध मेले में कुमाँऊ व गढ़वाल के हजारों की तादात मैं श्रद्धालू पहुंचे हैं।
प्राचीन समय से यहां पर काली मंदिर स्थापित है, शुरूआत में बंगारी परिवार इसकी पूजा करते थे, बर्तमान में भरसोली का भृकनी परिवार इस मंदिर की पूजा का कार्य करता है, लोग इस मंदिर में आकर मनौती मांगते थे मनौती पूरी होने पर माँता को बकरे व भैंसे की बलि चढ़ाने की प्रथा रही थी, जहां सैकड़ों की संख्या में बकरे व दर्जनो भैंसों की बलि दी जाती थी। कुछ बर्षो से बलि प्रथा पर प्रतिबंध के चलते अब बलि पूर्ण रुप से बंन्द हो चुकी है, लेकिन श्रर्द्धालू आज भी सप्तमी की रात्रि में बकरे व अष्टमी के दिन में भैंसे लेकर पहुचते है, लेकिन पूजा के बाद बकरे अपने सांथ वापस ले जाते हैं, जबकी भैंसे मंन्दिर समिति को सोंप दिए जाते हैं।
आज भी प्रातः काल से ही मंन्दिर में लोगों की भीड़ उमड़ी रहती है, और पूजा अर्चना कर सुख समृद्धि की कामना करते है। आज भी भरसोली, फतेहपुर,सुरमोली,लालनगरी व गोलना गांवों के लोग बकरे भैंसे के स्थान पर माँता के डोले सजाकर बाजे गाजे के सांथ मंन्दिर में पहुंचे, तथा तीन गांवों से भैंसे लेकर भी लोग यहां पहुंचे।
प्रशासन व मंन्दिर समिति के समझाने के बाद भेंसे मंन्दिर समिति को सौप दिए गए। इस बार मंन्दिर समिति ने सप्तमी की रात को मंन्दिर परिसर में सैकड़ों की संख्या में दीप प्रज्वलित कर नदी में दीप प्रवाहित करने की भी नयी परमंपरा की शुरुआत की गई, मेले को शांति पूर्वक सम्पन्न कराने में मंन्दिर समिति के अध्यक्ष किशन सिंह मैठानी,नारायण बंगारी, बिरेंद्र रावत,अशोक तिवारी,एड0 पूरन रजवार, सुरेंद्र गोयल के अलावा तहसीलदार दिवान गिरी,थानाध्यक्ष राहुल राठी, राजस्व निरीक्षक शंकर गिरी,गिरीश कुमार, अशोक राणा आदि ने अपना विशेष योगदान दिया गया।