आयुर्वेद द्वारा अपनी जीवन शैली में बदलाव कर स्वस्थ रहने के सीखें तरीके।

(डॉ. ललित सिंह, एमडी — राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय, बरकिन्डा सल्ट)

भिकियासैंण (अल्मोड़ा)। राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय के चिकित्सक डॉ. ललित सिंह ने एलर्जी और टिनिया कॉर्पोरिस (जिसे आमतौर पर दाद कहा जाता है) के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दाद एक सतही फंगल संक्रमण है, जो हाथों, पैरों या शरीर के किसी भी हिस्से पर हो सकता है।

लक्षण और संकेत —
इसमें गोल आकार के खुजलीयुक्त चकत्ते बनते हैं जिनके किनारे उभरे हुए दिखाई देते हैं। कभी-कभी चकत्तों के आस-पास की त्वचा रुखी और परतदार हो जाती है। लगभग हमेशा संक्रमण वाले क्षेत्रों में बाल झड़ने लगते हैं।

संक्रमण के कारण और बचाव —
डॉ.. सिंह ने बताया कि दाद गर्म और नम वातावरण में तेजी से फैलता है। इससे बचने के लिए त्वचा को हमेशा सूखा रखना और संक्रामक पदार्थों के संपर्क से बचना आवश्यक है।

रोकथाम के लिए—
● जानवरों, मिट्टी या पौधों को छूने के बाद हाथ धोएं।
● जिन व्यक्तियों को दाद या एलर्जी है, उनके निकट संपर्क से बचें।
● ढीले-ढाले और साफ कपड़े पहनें।
● ऐसे खेलों में भाग लेते समय विशेष स्वच्छता बरतें जिनमें अन्य लोगों के साथ शारीरिक संपर्क होता है।

आयुर्वेदिक उपचार —
आयुर्वेदिक चिकित्सक के अनुसार, उपचार में गंधक रसायन, त्रिफला चूर्ण, स्वर्ण गैरिक, महामंजिष्ठा क्वाथ, नीम चूर्ण, केशर गुगल आदि दवाओं का उपयोग लाभकारी होता है। इन दवाओं का सेवन चिकित्सक की देख-रेख में ही करना चाहिए।

परहेज —
● सरसों तेल, मैदा से बनी वस्तुएं, पैक्ड फूड और गर्म मसालों से परहेज करें।
● नहाने का साबुन व तौलिया अलग रखें।
● हल्का, सुपाच्य भोजन करें और तले-भुने भोजन से बचें।
● शरीर और कपड़ों की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें।

रिपोर्टर- रिया सोलीवाल

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